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Wednesday, April 24, 2013

कविता : मैं रसिक लाल- तुम फूलकली

मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.

तुमसे मिलकर तबियत बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

जब ऋतु बासंती बीत गई,
तब तेरी मेरी प्रीत गई.
तुम मुरझाई मैं टूट गया,
मौसम मतवाला रूठ गया.


नैना भीगे, मुस्कान चली
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली..

12 comments:

  1. Shalini RastogiApril 24, 2013 at 12:34 PM

    जब ऋतु बासंती बीत गई,
    तब तेरी मेरी प्रीत गई.
    तुम मुरझाई मैं टूट गया,
    मौसम मतवाला रूठ गया....
    क्या बात है अरुण जी ... रस के जाते ही प्रीत गई ...
    सही कहा गया है ...

    'सखी रस के लोभी होते हैं ये सजन सारे'

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  2. दिलबाग विर्कApril 24, 2013 at 8:40 PM

    आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  3. Kailash SharmaApril 24, 2013 at 11:34 PM

    वाह! बहुत प्यारा गीत...

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  4. jyoti khareApril 24, 2013 at 11:41 PM

    प्रेम,प्यार का सुखद अहसास
    सुंदर अनुभूति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  5. Rajendra KumarApril 25, 2013 at 2:33 PM

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मित्रवर,आभार.

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  6. Neetu SinghalApril 25, 2013 at 5:23 PM

    मैं शुष्क धरा, तुम शीतल बदली..,
    मैं रसिक लला तुम फूलकली.....

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  7. कविता रावतApril 25, 2013 at 7:11 PM

    जब ऋतु बासंती बीत गई,
    तब तेरी मेरी प्रीत गई...बहुत खूब ..रसिक लाल होते है ऐसे हैं.... ..

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  8. Virendra Kumar SharmaApril 25, 2013 at 10:47 PM

    मैं नीर भरी दुःख की बदली का रोमांटिक संस्करण -मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
    मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

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  9. Virendra Kumar SharmaApril 25, 2013 at 10:48 PM


    रोमांच और पुलक दोनों हैं इस रचना में .शुक्रिया हमें चर्चा मंच में न्योतने का .

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  10. अर्शिया अलीApril 26, 2013 at 2:57 PM

    बहुत सुंदर।

    ............
    एक विनम्र निवेदन: प्लीज़ वोट करें, सपोर्ट करें!

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  11. Priya TanwarApril 27, 2013 at 11:08 AM

    Lajwabbbbbbbbb.......

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  12. Aamir DubaiApril 27, 2013 at 1:19 PM

    बड़ी दिलचस्प रचना है यार ,बार बार पढ़ी।

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