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बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

कुछ दोहे

सर्वप्रथम ह्रदय लुटे, बाद नींद औ ख्वाब ।
प्रेम रोग सबसे अधिक, घातक और ख़राब ।१।

धीमी गति है स्वास की, और अधर हैं मौन ।
प्रश्न ह्रदय अब पूछता, मुझसे मैं हूँ कौन ।२।

जब जब जकडे देह को, यादों की जंजीर ।
भर भर सावन नैन दो, खूब बहायें नीर ।३।

रुखा सूखा भाग में, कष्ट निहित तकदीर ।
करनी मुश्किल है बयां, व्यथित ह्रदय की पीर ।४।

जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।५।

7 टिप्‍पणियां:

  1. राजेंद्र कुमार26 फ़रवरी 2014 को 12:22 pm

    प्रेम रोग में चैन कहाँ, बहुत ही सार्थक दोहे। आपका आभार।

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  2. सुन्दर दोहे भाई अरुण-
    बधाई-

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  3. प्रवीण पाण्डेय26 फ़रवरी 2014 को 7:02 pm

    अपने को अपने से छुड़ाता प्रेम।

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  4. धीरेन्द्र सिंह भदौरिया26 फ़रवरी 2014 को 7:19 pm

    वाह ! बहुत सुंदर दोहे ...! अरुन जी ....

    RECENT POST - फागुन की शाम.

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  5. दिलबाग विर्क26 फ़रवरी 2014 को 8:12 pm

    आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार |

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  6. घातक और ख़राब करे नित जीना दूभर
    दिल भी तो काफ़िर की बीज बोये उसर

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  7. अभिव्यंजना13 मार्च 2014 को 10:00 pm

    दोहों की विधा में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......

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