Pages

आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

Wednesday, February 13, 2013

लुटा है चमन मुस्कुराने की जिद में


बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम 

महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
 
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
 
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
 
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
 
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,

19 comments:

  1. सरिता भाटियाFebruary 13, 2013 at 12:43 PM

    bahut khub arun
    गुज़ारिश : मौसम है आशिकाना.............

    ReplyDelete
  2. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाFebruary 13, 2013 at 1:54 PM

    अन्धेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
    उजाला जहाँ से मिटाने की जिद में,,,,


    बहुत ही उम्दा गजल,,,अरुण जी ,,,शुभकामनाए,,,

    RECENT POST... नवगीत,

    ReplyDelete
  3. Parveen MalikFebruary 13, 2013 at 2:07 PM

    अन्धेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
    उजाला जहाँ से मिटाने की जिद में........
    बहुत खूबसूरत रचना .... बधाई !

    ReplyDelete
  4. Rajendra KumarFebruary 13, 2013 at 2:50 PM

    क्या खूब लिख गये दुसरो को संदेश देने के जिद में,अतिसुन्दर।

    ReplyDelete
  5. संध्या शर्माFebruary 13, 2013 at 4:43 PM

    बहुत जरुरी सन्देश देती रचना...इस जिद में इंसान ने इंसानियत भुला दी है...

    ReplyDelete
  6. madhu singhFebruary 13, 2013 at 5:27 PM

    अतिसुन्दर सन्देश ,अन्धेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
    उजाला जहाँ से मिटाने की जिद में,,,,

    ReplyDelete
  7. रविकरFebruary 13, 2013 at 7:15 PM

    बढ़िया प्रस्तुति |
    शुभकामनायें -

    ReplyDelete
  8. अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)February 13, 2013 at 9:09 PM

    न छत मिल सकी ना जमीं मिल सकी है
    लुटा आशियां , घर बसाने की जिद में ||

    ReplyDelete
  9. अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)February 13, 2013 at 9:10 PM

    न छत मिल सकी ना जमीं मिल सकी है
    लुटा आशियां , घर बसाने की जिद में ||

    ReplyDelete
  10. Reena MauryaFebruary 13, 2013 at 10:57 PM

    accha sandesh deti behtarin rachana...
    :-)

    ReplyDelete
  11. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)February 15, 2013 at 2:27 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-02-2013) के चर्चा मंच-1157 (बिना किसी को ख़बर किये) पर भी होगी!
    --
    कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
    सादर...!
    बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
    सूचनार्थ!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  12. संजय भास्‍कर अहर्निशFebruary 15, 2013 at 2:31 PM

    सुन्दर सन्देश लाज़वाब...बहूत ही उत्कृष्ट और प्रेरक अभिव्यक्ति..आभार

    ReplyDelete
  13. Virendra Kumar SharmaFebruary 16, 2013 at 2:25 PM


    भुला ना सके हम भुलाने की जिद में ,

    बरसों लगे यूं आजमाने की जिद में .

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति है अनंत भाई .

    ReplyDelete
  14. Tushar Raj RastogiFebruary 16, 2013 at 3:31 PM

    अनंत भाई बहुत अच्छे | बधाई

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  15. Lokesh SinghFebruary 16, 2013 at 4:19 PM

    जो नव -उद्गार मन जगे खूबसूरत ,
    गजल बन गयी व्यक्त करने की जिद में

    ReplyDelete
  16. Dr.NISHA MAHARANAFebruary 16, 2013 at 6:19 PM

    करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
    सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,waah...very nice.....

    ReplyDelete
  17. Virendra Kumar SharmaFebruary 16, 2013 at 6:41 PM

    शुक्रिया हमें चर्चा मंच पे बिठाने की .

    ReplyDelete
  18. Brijesh SinghFebruary 16, 2013 at 10:48 PM

    सुन्दर रचना!
    http://voice-brijesh.blogspot.com

    ReplyDelete
  19. Shalini RastogiFebruary 18, 2013 at 4:13 PM

    करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
    सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,...बेहतरीन शेर अरुण जी!

    ReplyDelete
Add comment
Load more...

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर