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Friday, November 23, 2012

इन दिनों - भाग तीन

तेरी बहुत आती है, याद इन दिनों,
दिल ने किया मुझको, बर्बाद इन दिनों,

गम ने निशाना, घर की ओर कर लिया,
कैदी बना है दिल, आज़ाद इन दिनों,

पागल मुझे तेरी, करती रही अदा,
कातिल तेरी अदा को, दाद इन दिनों,

डाली डकैती दिल की, जायदाद पर,
बढ़ता रहा हर दिन, बेदाद इन दिनों,

नक्बत इश्क में, आया "अरुन" के,
सुनता नहीं रब भी, फ़रियाद इन दिनों,

बेदाद - अत्याचार, 
नक्बत - दुर्भाग्य

20 comments:

  1. रविकरNovember 23, 2012 at 11:14 AM

    फरियादी के दर्द से, इनका क्या सम्बन्ध ?
    जलवे से जलता जगत, ठगी मुहब्बत अंध |
    ठगी मुहब्बत अंध, मशीनें बनती काया |
    मरा सुकोमल भाव, ग़मों में सदा डुबाया |
    करुण अरुण जा चेत, बड़ी जालिम बेदादी |
    आदी कातिल जान, मरा रविकर फरियादी ||

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 23, 2012 at 12:28 PM

      आभार रविकर सर

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  • DR. PAWAN K. MISHRANovember 23, 2012 at 11:47 AM

    बढिया है. लिखते रहे

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 23, 2012 at 12:28 PM

      शुक्रिया पवन जी

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  • रविकरNovember 23, 2012 at 11:53 AM

    आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 23, 2012 at 12:30 PM

      बहुत-2 शुक्रिया सर

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  • धीरेन्द्र सिंह भदौरियाNovember 23, 2012 at 12:24 PM

    बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,बधाई अरुण जी,,

    recent post : प्यार न भूले,,,

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 23, 2012 at 12:28 PM

      तहे दिल से धन्यवाद धीरेन्द्र सर

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  • सदाNovember 23, 2012 at 4:39 PM

    वाह ... बहुत खूब।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 23, 2012 at 4:40 PM

      बहुत-2 शुक्रिया सदा दीदी

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  • संजय भास्करNovember 23, 2012 at 7:33 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति दिल को छू जाती हैं पंक्तियाँ बहुत बहुत बधाई

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 24, 2012 at 11:22 AM

      तहे दिल से शुक्रिया संजय भाई

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  • Reena MauryaNovember 23, 2012 at 7:52 PM

    बहुत बढियां...
    इन दिनों का सिलसिला..
    :-)

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 24, 2012 at 11:22 AM

      शुक्रिया रीना जी

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  • ZEALNovember 23, 2012 at 8:29 PM

    Beautiful creation..

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 24, 2012 at 11:22 AM

      बहुत-2 शुक्रिया दिव्या जी

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  • Virendra Kumar SharmaNovember 24, 2012 at 1:07 PM

    नक्बत इश्क में, आया "अरुन" के,
    सुनता नहीं रब भी, फ़रियाद इन दिनों,

    अच्छा शैर है ,रब बदल लो ,कई घूमते है गली गली इन दिनों .

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 24, 2012 at 5:32 PM

      वाह वीरेंद्र सर क्या बात कही है रब बदल लो.

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  • आशा जोगळेकरNovember 24, 2012 at 9:15 PM

    सुंदर रचना । फरियाद को रब भी नही सुन रहा ।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 25, 2012 at 10:45 AM

      तहे दिल से आभार आदरणीया आशा जी

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