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Friday, June 28, 2013

शिव स्तुति मत्तगयन्द सवैया - त्रासदी पर आल्हा/वीर छंद


मत्तगयन्द सवैया 
आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें


आल्हा छंद

गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार

19 comments:

  1. कालीपद प्रसादJune 28, 2013 at 3:53 PM

    दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी लगी .अनुप्रास अलंकार से सजीं छंद बहुत सुन्दर है .आल्हा में कैसे फिट हुआ ,प्रकाश डाले अच्छा लगेगा
    latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

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  2. Kailash SharmaJune 28, 2013 at 7:11 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुतियां....

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  3. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाJune 28, 2013 at 8:28 PM

    दोनों छंद बहुत अच्छे लगे,सुंदर प्रस्तुति,,,बधाई

    Recent post: एक हमसफर चाहिए.

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  4. प्रवीण पाण्डेयJune 29, 2013 at 9:05 AM

    सुन्दर रचना, सार्थक संदेश..

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  5. रविकरJune 29, 2013 at 11:37 AM

    सुन्दर प्रस्तुतियां-
    बढ़िया चित्रण
    शुभकामनायें प्रियवर

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  6. Shalini RastogiJune 29, 2013 at 4:28 PM

    आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 30 जून 2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...

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  7. sanny chauhanJune 29, 2013 at 4:31 PM

    बहुत बढ़िया लिखा अरुण जी

    विंडो 7 , xp में ही उठायें विंडो 8 का लुफ्त
    विंडो 7 को upgrade करने का तरीका

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  8. ज्योति-कलशJune 29, 2013 at 4:49 PM

    सुन्दर मोहक प्रस्तुति ...

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  9. Neeraj KumarJune 29, 2013 at 5:54 PM

    बहुत ही उत्कृष्ट रचनाएँ । सुन्दर छंद ।

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  10. Surendra shukla" Bhramar"5June 29, 2013 at 11:20 PM

    सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
    पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
    पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

    प्रिय अनंत जी ...बहुत प्रभावी और वास्तविकता के दर्शन कराती रचना ...सच में जिम्मेदार हम ही तो है
    आभार
    भ्रमर ५

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  11. राजेंद्र कुमारJune 30, 2013 at 7:09 AM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुतियां,शुभकामनायें.

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  12. durga prasad MathurJune 30, 2013 at 8:07 PM

    अरून जी उत्कृष्ट रचना के लिएः बधाई !!

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  13. Virendra Kumar SharmaJuly 1, 2013 at 7:55 PM


    डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
    घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
    आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
    इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मे

    गजब का ज्वारीय आवेग लिए है यह रचना उद्दाम वेगवती धारा सी .हाँ मानव जनित हैं ये आपदाएं मनमोहन कुसूरवार हैं जो हाथ पे हाथ धरे बैठे रहे .करते रहे इंतज़ार बादल के फटने का .एक दिन ऐसे ही कोई भारत पे मिसायल एटमी भी फोड़ देगा .ॐ शान्ति .

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  14. vibha rani ShrivastavaJuly 2, 2013 at 6:26 AM

    शुभप्रभात
    भोले भण्डारी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे .....
    आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
    इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार
    बिल्कुल .... 100% सच ...... सार्थक अभिव्यक्ति .....
    और हार्दिक शुभकामनायें

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  15. vibha rani ShrivastavaJuly 2, 2013 at 11:47 AM

    उम्दा
    कुशल कारगिरी लेखन में

    भोले भण्डारी की कृपा हमेशा आप पर बनी रहे

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  16. संजय भास्‍करJuly 2, 2013 at 7:13 PM

    बहुत ही उत्कृष्ट रचना अनंत जी

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  17. K. C. MAIDAJuly 4, 2013 at 11:16 AM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति अरुण जी........

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  18. दिगम्बर नासवाJuly 4, 2013 at 1:05 PM

    बहुत खूब ... हर विधा में मास्टरी कर रहे हैं आप ...
    लाजवाब हैं दोनों ही छंद ...

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  19. मदन मोहन सक्सेनाAugust 23, 2013 at 3:56 PM

    बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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