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Wednesday, June 12, 2013

"पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे

ओ बी ओ महोत्सव अंक ३२ वें में विषय "पाखण्ड" पर आधारित कुछ दोहे.

लोभी पहने देखिये, पाखण्डी परिधान ।
चिकनी चुपड़ी बात में, क्यों आता नादान ।।

नित पाखण्डी खेलता, तंत्र मंत्र का खेल ।
अपनी गाड़ी रुक गई, इनकी दौड़ी रेल ।।

पंडित बाबा मौलवी, जोगी नेता नाम ।
पाखण्डी ये लोग हैं, धोखा इनका काम ।।

खुलके बच्चा मांग ले, आया है दरबार ।
भेंट चढ़ा दे प्रेम से, खुश होगा परिवार ।।

होते पाखंडी सभी, बड़े पैंतरे बाज ।
धीरे धीरे हो रहा, इनका बड़ा समाज ।।

हींग लगे न फिटकरी, धंधा भाये खूब ।
इनकी चांदी हो गई, निर्धन गया है डूब ।।

ठग बैठा पोशाक में, बना महात्मा संत ।
अपनी झोली भर रहा, कर दूजे का अंत ।।

22 comments:

  1. महेन्द्र श्रीवास्तवJune 12, 2013 at 11:53 AM

    क्या बात है, समाज की हकीकत को बेपर्दा करते दोहे।
    बहुत सुंदरॉ


    मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
    हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html

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  2. राजेंद्र कुमारJune 12, 2013 at 1:32 PM

    आपकी यह रचना कल गुरुवार (13-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  3. sushilaJune 12, 2013 at 1:38 PM

    सार्थक और सुंदर दोहे।

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  4. प्रवीण पाण्डेयJune 12, 2013 at 4:06 PM

    बहुत ख़ूब, क्या धोया है।

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  5. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)June 12, 2013 at 6:34 PM

    खुलके बच्चा मांग ले, आया है दरबार ।
    भेंट चढ़ा दे प्रेम से, खुश होगा परिवार।।
    --
    वत्स कहीं आपके घर में भी किसी बाबा का शुभाशीष तो नहीं फलीभूत होगा।
    --
    बहुत सुन्दर सीखदेते बढ़िया दोहे!

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  6. दिलबाग विर्कJune 12, 2013 at 9:04 PM

    आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

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  7. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाJune 13, 2013 at 12:25 AM

    कमाल के सुंदर दोहे ,, बधाई अरुन जी

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  8. pushpey omJune 13, 2013 at 5:50 AM

    प्यार से धोना इसे कहते है..मजा आ गया.....साभार

    ReplyDelete
  9. pushpey omJune 13, 2013 at 5:50 AM

    प्यार से धोना इसे कहते है..मजा आ गया.....साभार

    ReplyDelete
  10. वाणी गीतJune 13, 2013 at 6:30 AM

    आजकल के मौसम पर सटीक पंक्तियाँ , कलियुग इसी को कहा जाता होगा !

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  11. अरुणाJune 13, 2013 at 6:50 AM

    बहुत सुन्दर दोहे ........बदलते समाज को समर्पित ........

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  12. कालीपद प्रसादJune 13, 2013 at 9:25 AM

    सटीक अभिव्यक्ति !
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  13. पूरण खण्डेलवालJune 13, 2013 at 10:38 AM

    सुन्दर कटाक्षपूर्ण दोहे !!

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  14. संध्या शर्माJune 13, 2013 at 2:57 PM

    यही सब हो रहा है हमारे समाज में लोग जानते - बूझते हुए भी इनके चंगुल में फंसते जा रहे हैं, और फल-फूल रहा है ढोंगियों का कारोबार...
    सार्थक दोहे ... शुभकामनायें

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  15. HiteshJune 13, 2013 at 9:53 PM

    आज के परिप्रेक्ष्य में एक एक दोहा सटीक निशाने पे लगा है !!
    आशा करता हूँ आपका ये प्रयास जारी रहेगा !!
    बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन !!

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  16. सरिता भाटियाJune 13, 2013 at 10:39 PM

    क्या बात है !!
    सामयिक दोहे

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  17. Manjusha pandeyJune 14, 2013 at 7:14 PM

    समाज में बढ़ते पाखंड को सच्चे अर्थों में दर्शाते दोहे ....अति सुंदर

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  18. Virendra Kumar SharmaJune 15, 2013 at 8:41 PM

    बेहतरीन व्यंग्य विडंबन दोहावली रूप में .शुक्रिया हमारी चर्चा मंच प्रविष्ठी पर

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  19. दिगम्बर नासवाJune 16, 2013 at 2:06 PM

    अच्छे दोहे ... आज के हालात पे सटीक तप्सरा ...
    मज़ा आया पढ़ के ...

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  20. ज्योति-कलशJune 16, 2013 at 3:25 PM

    आप बहुत सुन्दर ,सार्थक लिखते हैं ..
    बहुत शुभ कामनाओं के साथ
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  21. संजय भास्‍करJune 26, 2013 at 2:40 PM

    बहुत सुन्दर दोहे..बेहतरीन व्यंग्य

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  22. Reena MauryaJuly 20, 2013 at 2:23 PM

    जवाब नहीं इस रचना का..
    बेहतरीन..बेहतरीन...
    :-)

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