Pages

आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

Friday, July 6, 2012

ख्वाब आँखों के

ख्वाब आँखों के कोई भी मुकम्मल हो नहीं पाए,
खाकर ठोकर यूँ गिरे फिर उठकर चल नहीं पाए,
खिलाफत कर नहीं पाए बंधे रिश्ते कुछ ऐसे थे,
सवालों के किसी मुद्दे का कोई हल नहीं पाए,
बड़े उलटे सीधे थे, गढ़े रिवाज तेरे शहर के,
लाख कोशिशों के बावजूद हम उनमे ढल नहीं पाए,
थरथराते होंठो ने जब, शिकायत दिल से की,
बहते अश्कों को हांथो से हम फिर मल नहीं  पाए,
लगी जब आग सीने में, तेरी यादों की वजह से,
हम जल गए,  किस्से जल नहीं पाए......

8 comments:

  1. यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)July 6, 2012 at 2:34 PM

    बहुत खूब मित्र।


    सादर
    ---
    ‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  2. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)July 6, 2012 at 9:56 PM

    बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (07-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  3. अरुन शर्माJuly 7, 2012 at 11:12 AM

    बहुत बहुत शुक्रिया SIR

    ReplyDelete
  4. संजय कुमार चौरसियाJuly 7, 2012 at 12:27 PM

    ACHCHHA LIKHTE HO,

    ReplyDelete
  5. सदाJuly 7, 2012 at 12:46 PM

    वाह ... बेहतरीन

    ReplyDelete
  6. अरुन शर्माJuly 7, 2012 at 2:11 PM

    शुक्रिया सदा जी

    ReplyDelete
  7. Reena MauryaJuly 7, 2012 at 7:22 PM

    क्या कहने..
    गहन भाव लिए...
    बहुत खूब रचना...

    ReplyDelete
  8. अरुन शर्माJuly 8, 2012 at 11:21 AM

    रीना जी शुक्रिया

    ReplyDelete
Add comment
Load more...

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर