Pages

आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

Saturday, April 14, 2012

हो रहे हैं टुकड़े मेरे जिस्म के

हो रहे हैं टुकड़े मेरे जिस्म के,
दर्द करते हैं दर्द कई किस्म के,
हवा गम की तबियत जुदा करती है,
सांस लेने से बढ़ें घाव जख्म के,
इंतज़ार की उमर बड़ी है कितनी,
वक़्त बाकी है अभी काँधे की रस्म के.....

No comments:

Post a Comment

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर